Tuesday, 12 July 2016

दुराग्रह से ग्रस्त मानव - ||भर्तृहरि नीति शतकम – मूर्ख पद्धति वर्णनम – श्लोक ४ ||


||भर्तृहरि नीति शतकम – मूर्ख पद्धति वर्णनम – श्लोक ४||

संस्कृत श्लोक (original slok) 

प्रसह्य मनिमुध्दरेंमकरवक्त्र्दंष्ट् आन्तरात|
समुद्रमापीसंतरेत प्रचाल्दूर्मिमाला अकुलम|
भुज्क़न्ग्मापीकोपितमशिरसीपुश्प्वादधारयेत|
न तुप्रतिनिविष्टि-मूर्खजन-चित्तमाराधयेत |||| 

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भावार्थ-  हो सकता है की कोई व्यक्ति घड़ियाल के मुख में स्थित दांतों से बलपूर्वक मणि निकाल ले; संभव है की कोई प्रचंड तरंगों से छुब्ध समुद्र को भी तैरकर पार करले; हो सकता है की कोई क्रोधित सर्प को भी पुष्प के सामान अपने सर पर धारण कर ले; परन्तु दुराग्रह से ग्रस्त मूर्ख व्यक्ति के चित्त को कोई भी संतुष्ट नही कर सकता| 
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 व्याख्या दुराग्रह का तात्पर्य होता है की किसी विषय या वास्तु के बारे में पहले से कोई निश्चित गलत ढंग की मानसिकता बना लेना. ऐसा व्यक्ति जो किसी की बात नही समझ सकता और थोड़े ज्ञान वाला है और दुराग्रह पूर्वाग्रह से ग्रस्त है वह अपनी सोची हुई बात पर बदलाव नहीं ला सकता. आज जो आतंकवाद फ़ैल चुका है यहभी कहीं न कहीं दुराग्रह और पूर्वाग्रह से ही ग्रषित व्यक्तियों के द्वारा किया जाने वाले कर्म है जिनको की समझा पाना बड़ा ही कठिन है. दुराग्रह से ग्रषित व्यक्ति कोलगता है की वहजो कर रहा हैबस वही भर सत्य है बंकि सब गलत है बेकार है. उसी की बात सब माने वही जोकहे बस वही सुने. ऐसी भावना बना लेना एक ऐसी स्थित है जिसे कोई बदल नहीं सकता और विशेष तौर पर ऐसे व्यक्ति के विषय में जो अल्प बुद्धि वाला अर्थात पूर्वाग्रह और दुराग्रह से ग्रस्त हो. इसी लिए श्री भर्तिहारी जी ने कहा है की असंभव से असंभव कार्य कर लेना आसान है पर ऐसे व्यक्तियों को समझा पाना बड़ा ही दुस्कर कार्य है. घड़ियाल के मुख में स्थित कोई भी वस्तु को निकाल पाना असम्भव के समान है क्यों कि कहा भी गया है की घड़ियाल के मुख में जो भी एक बार प्रवेश कर जाए वह वहां से जीवित नहीं लौट सकता है. जब समुद्र में ज्वार भाटा आ जाता हैऔर सुनामी वाली लहरें उठने लगती हैं तो समुद्र को तैरना तो दूर की बात है उसके नजदीक भी कोई बड़े से बड़े तैराक भी खड़े होने से घबराएंगे पर भार्तिहारी जी कहते हैं की शायद कोई ऐसे समुद्र को भी पार करले. इसी प्रकार क्रोधित सर्प जब अपने पूरे आवेग में होता है तो वह काल के समान प्रतीत होता है. उसके आसपास भीखड़े होने में भय प्रतीत होता है. क्रोधित सर्प कोनियंत्रि करना सपेरों के भी बस की बात नही होती है. कई बार इसमे भारी दिक्कतें आती हैं. पर फिर भी क्रोधित सर्प को नियंत्रित किया जा सकता है परन्तु फिर भी उसे गले में तत्काल नियंत्रण के बाद धारण करना तो असंभव जैसा कार्य है. परन्तु भर्तिहारी जी कहते है की ऐसा भी कार्य यदि संभव हो तो भी चलता.है, पर उनके अनुसार अल्प ज्ञान से मदमत्त व्यक्ति जो दुराग्रह से भी ग्रस्त है उसे समझा पाना इन सब उपमाओं से भी बड़ा दुस्कर कार्य है. वास्तव में देखा जाए तो मानव जीवन में ऐसे पड़ाव कई बार आते हैं जब हम किसी पूर्वाग्रह अथवा दुराग्रह से ग्रस्त होते हैं और ऐसा लगता है की हमी बस सही हैं और पूरा संसार गलत है. यह स्थिति काफी हद तक यहाँ पर चरितार्थ होती है. (शिवानन्द द्विवेदी, श्रीमद भगवद कथा धर्मार्थ समिति भारत....क्रमश:)

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